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अंधविरोध से देशविरोध तक
मैं झूठे आरोपों और बरगलाने के लिए आता हूँ
मैं खानदानी डकैतों को किसान बताता हूँ अंधविरोध के चक्कर में अपनी मर्यादा भूल जाता हूँ
पंत प्रधान...
पेट की तड़प मिटाने को मैं घर से निकल आया
पेट की तड़प मिटाने को मैं घर से निकल आया
लेकिन इस शहर का पानी मुझे रास नहीं आया मैं कस्बों की ज़िन्दगी के तो करीब...
इतना ही कहना है तुझसे मेरी माँ
अपने हुनर और मेहनत की बदौलत सब कुछ पाउँगा
एक दिन अपने इरादों में ज़रूर कामयाब हो जाऊंगा जिन्हे ग़लतफ़हमी है कि मैं नालायक हूँ
अपनी कामयाबी...
सुन रहे हो तुम?
सुन रहे हो तुम?
उन सूखी पत्तियों की सरसराहट
जो बसंती बयार का इंतज़ार करते हुए
ज़मीन पर बिखरी पड़ी हैं। कैसे सुनोगे?
आखिर इंतज़ार का दर्द तुम्हे कैसे...
रब ने दिया है सबको बराबर मौका
रब ने दिया है सबको बराबर मौका
वो इंसान पर है कि कैसे ज़िन्दगी सँवारे एक चिड़िया दाना चुगती है पेड़ पर
और दूसरी पिंजरे में ज़िन्दगी...
लॉकडाउन में है नौकरी पर खतरा? गाँव लौटिये और सबसे कम...
जिस व्यक्ति के अंदर दृढ़ इच्छा शक्ति पैदा हो जाती है वह कठिन से कठिन कार्य बड़ी आसानी से कर लेता है। ऐसी ही...
उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए
उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए
ख्वाबों में तो कितना बतियाते थे कभी गौर नहीं किया अपने तेवरों पर
बात बात पर हम भी गरियाते थे वो कौन...
होती है खामोशी जब खता अपनी हो
होती है खामोशी जब खता अपनी हो
इल्ज़ाम दूसरों पर हो तो हंगामा होता है उसके ज़हन से ये बात उतरी नहीं अभी तक
कि इश्क़ मे...
संभलना जरा उस से नजरें बचाकर
संभलना जरा उस से नजरें बचाकर
कहीं बेवकूफ ना बना दे खूबसूरती दिखा कर आंखों ने बहुत धोखे दिए हैं मेहरबान
कभी नजरें मिलाकर कभी नजरें झुकाकर बस...