बड़ी कोशिश की कि उसका जेहन सुधर जाए
मगर उसे तो सब पर तोहमत लगाना पसंद है
वीरान सड़कों पर आवाज़ें गुम हो जाती है
कौन है जो गुफ्तगू के लिए फिक्रमंद हैं
हम खुले हुए ख्यालों के आदमी हैं भाई
अब मैं क्या करूँ जो उसकी सोच बंद है
कितने सुराख हो चुके हैं ज़ुबानी तीरों से
अब उस पर सैकड़ों चुप्पी के पैबंद हैं
कौन से चेहरे से उसके इंसानियत झलकती है
मुझे तो उसकी सूरत ही नापसंद है
रहेगा वो अपनी दुनिया में कुढ़ कुढ कर
अपनी तो ज़िदगी में आनंद है आनंद है
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