बेचैन रहती है रहगुज़र कि क्या करें
खामोश रहती है हमसफर कि क्या करें
शोर कितना है आसपास कि सुकून खो गया
किसकी लगी नज़र कि क्या करें
मेरे अक्स को धुंधला कर गया मेरा मिज़ाज़
अब यूँ ही हो ज़िन्दगी बसर कि क्या करें
चैन रहता है कब कि मै परेशान हूँ
होता नहीं उसको असर कि क्या करें
पैर फैलाकर सोने का मन तो बहुत हुआ
सुस्ती बनी ज़हर कि क्या करें
रात को एक पहर भी सांस लेना मुमकिन नहीं
ऐसे ज़िन्दगी रही गुज़र कि क्या करें