जिनके कदमों ने हिम्मत की है बढ़ने की
फिर मंजिलों के निशान मिल ही जाते हैं
श्रीराम और भारत माता का गीत गाते हैं
दो संत अपनी राष्ट्रभक्ति का अलख जगाते हैं
कौन है जो सामने बोलने का दम रखता है
पीछे से तो चूहे के भी पर निकल आते हैं
बड़े बड़े दावे करके गुंडई करने चले थे
फैसले के दिन तो होश फाख्ता हो जाते है
टूटी हुई साइकल पड़ी रो रही है
बुलडोजर के धमाके से पुर्जे निकल जाते हैं
अपने पालनहार को भी इस्तेमाल किया
टोंटी चोरी को अपनी शान बताते हैं
हार को स्वीकार करके विनम्र रहना सीखो
वरना घमंड के बादल सूरज से बिखर जाते हैं
स्वागत है आपका जूतों की माला से
बाकी आपके मुंह पर कालिख पोत जाते हैं
तुम अखिल जाति का ईश्वर बने बैठे थे
जनता की मार से तुम्हारे अब गाल सूज जाते हैं
कभी किसी संत का अपमान मत करना
वरना नर्क में भी तुम्हारे रिश्ते नाते हैं
नंगा था समाजवाद बस नमाज़ी बनकर बैठे थे
भगवा के लहराने से होश उड़ जाते हैं
नफरती कलमा और फतवा पढ़कर आते थे
अब वही जय श्री राम के जय घोष पर थरथराते हैं
पहले तो अपने परिजनों और जात का राज था
अब धर्मनिस्ठ कर्म योगी का परचम लहराते हैं
सत्ता के मद में तो बौने हो गए सभी नेता मगर
सिंहासन वही है जिसमे भगवाधारी आए हैं