वो ठिठुरता हुआ कूड़ा बीनता है सर्दी में
उसे पता है कि भूख सर्दी से कम नहीं
कहां सुनवाई होती है गरीब की यहां पर
उनका दर्द समझ पाएं इतना गुर्दे में दम नहीं
मजदूर के हाथों से धरती में सोना उगता है
ये जगजाहिर सच्चाई है, कोई भरम नहीं
पैर फट गए उसके रिक्शा चलाते चलाते
और मोल भाव करने में हमको जरा भी शर्म नही
उसकी ख्वाहिश अपने परिवार का भरण पोषण है
सोने को एक पुरानी दरी है, कोई मखमल नहीं
दुखों को झेलकर अपनी हिम्मत खुद जुटाता है
दिल में बहुत दर्द है मगर आंखें उसकी नम नहीं
अपनी मेहनत से वो खेतों पर खुशहाली लाता है
खुद्दार है देश का कृषक, नेताओं सा बेशर्म नहीं
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