धड़कने बयां करती है ज़िन्दगी की किश्तें
सांसों का गुच्छा अब टूट रहा है
आगजनी होती है सोच में सभी के
गुस्सा अब बेधड़क फूट रहा है
जो लम्बी दीवारों के महलों में थे
उनका गुरूर भी टूट रहा है
किए होंगे कारनामे तभी नाम आया
लगता है रुआब भी अब छूट रहा है
शोर के बाजार में मौन जैसे मर गया
और आवाज़ का दुकानदार हमें लूट रहा है
जज़्बात भी सयाने हो गए हैं इस तरह
तीखी नज़रों से दिल मुझे घूर रहा है
खिलाफ नहीं था बस कुछ अलग था मैं
मुझमे भी सच और झूठ रहा है
बुलंदी पर पहुंच कर करता भी क्या
ज़िन्दगी का मसला तो रूठ रहा है
जिनकी रहबरी में ज़िन्दगी बीती है
उन्ही से मेरा दिल पूछ रहा है
शरीर पास है मगर रूह भटकती है
एहसासों का मंजर भी दूर रहा है
यादों का क्या है जिंदा रहेंगी
पर किस्सा क्यों अपना वो भूल रहा है
भीगे हुए दामन में कभी बूंदें सिमटी थी
अब तो अश्क का दरिया भी सूख रहा है
शायद दो पल का सुकून मिले
पुलिंदा अब नब्जों का फूल रहा है
कठिन शब्द और उनके अर्थ:
रहबरी: मार्गदर्शन
रुआब: दबदबा
पुलिंदा: काग़ज़, कपड़े आदि की बँधी गठरी
जज़्बात: भावना
मसला: समस्या, मुद्दा, मामला