दिल एक सुकून की तलाश में रहता है
अपना हाल-ए-दिल सबसे कहता है
पांव टिकते नहीं जो थोड़ी ख़ुशी मिली
कौन कब तक यहाँ खुश रहता है
यहाँ तो जज्बात बस सूख से गए है
पर आसमां बेधड़क जमी पर बरसता है
क्या होगा रास्ता आगे का पता नहीं
हर लम्हा वक्त से ऐसे निकलता है
सारी भीड़ में कोई भी शख्स नहीं यहां
जो मेरे साथ घर में रहता है
तुम एक दो बूंदो से परेशान होते हो
यहाँ तो आँखों से समंदर बहता है
दर्द की अभी तो शुरुआत हुई है
आदमी तो ग़म को ज़िन्दगी भर सहता है
घर बनाने में बड़ी मेहनत लगती है
मगर तूफां से वो मिनटों में बिखरता है
कौन है जो दो बात पास बैठकर करे
यहाँ तो हर शख्स जल्दी में रहता है
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