दीवार-ओ-दर में तेरा निशान मिलता है
तू खो गया कहीं, और घर सुनसान मिलता है
आते हुए एक मुट्ठी दुआओं की साथ लाना
इस कस्बे में हर बाशिंदा परेशान मिलता है
ज़िन्दगी की राहों की सीधा समझने वाला
हर दूसरा आदमी यहाँ नादान मिलता है
पत्थर के बुरादों से कभी आशियाँ नहीं बनता
ताउम्र मेहनत के बाद एक मकान मिलता है
संजोना यादों को कि उम्र बड़ी बेवफा है
बरसों बाद फिर बचपन का सामान मिलता है
कभी जिस से भी तुम्हारी जान पहचान थी
बुरे वक़्त में वो हर शख्स अनजान मिलता है
कुछ तो बात थी स्कूल के दिनों की
जो उसके बाद ज़िन्दगी भर इम्तिहान मिलता है
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