एक शाम बोझिल हुई एक रात भी बुझ गयी
ये ज़िंदगी भी ना जाने क्यूँ इस तरह रुक गयी
अटकलें लगाते हैं सब जीने के हिसाब से
साँस भी मुक़द्दर से यूँ पीछे छूट गयी
कोई शोर है दबा मन के अंधेरे मे कहीं
कुछ आवाज़ हुई और दर्द की शीशी टूट गयी
रौब इतना था की आसमान से गुफ्तगू करते थे
कुछ ऐसा हुए हालात, कि नज़रें झुक गयी
बड़ा उबाल था जवानी में कि कुछ कर दिखाएंगे
ज़िन्दगी की हकीकत से सारी नसें सूख गयी
एक भरम था की कोई साथ देगा रास्ते में
मगर यहाँ चलते चलते अपनी कमर टूट गई
उसने कहा था कि तुम पर सब कुर्बान है
बेवक़ूफ़ बनाकर सारा सामान लूट गयी
वो टाट पर बैठ कर भी खुश रहते हैं
यहाँ मख़मली गद्दों से भी किस्मत फूट गई
Comments are closed.