जुगनू हूं रात में गश्त लगाता हूं
अपनी हैसियत के हिसाब से जगमगाता हूं
मेरी क्या बिसात होगी चांद के बनिस्बत
बस अपनी मस्ती में फड़फड़ाता हूं
आफताब तो रोशनी का ढेर लगाता है
मैं तो जलती बुझती चिंगारी लगाता हूं
जितना मेरा दम होगा उतना ही चलूंगा
जिंदगी की मौज को हर पल मनाता हूं
शायद एक रात की ही जिंदगी होगी मेरी
इसीलिए खुलकर जश्न मनाता हूं
मुझे बस एक मुट्ठी आसमान चाहिए
उसी के दायरे में अपने पंख फैलाता हूं।
तुम्हारे ज़हन में याद बनकर रहूं या ना रहूं
पर मिट्टी के आंचल में खुद को सुलाता हूं
एक जिंदगी मिली है यारों इसे ज़ाया मत करना
बस उड़ते रहने की कहानी सुनाता हूं