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मकर संक्रांति का पर्व मेरे गाँव की छाँव में

Makar Sankranti

जीवन की भी क्या विडंबना है कि काम और रोजगार के लिए आदमी को अपनी मातृभूमि या यूं कहें अपने गाँव को छोड़ना पड़ता है ... शहर की गलियों, मकानों और दफ्तरों में अपने पैरों को रगड़ना पड़ता है कि कहीं यहां पर भी बसेरा हो जाए। शिक्षा एवं रोजगार के कारण गाँव के आँगन सुने हो गए, दालानों-खलिहानो...

ठौर

Place

वक्त तू मुझे कहता है चलने को और खुद है कि रोज़ दौड़ लगाता है अभी पड़े हैं हम घर के किसी कोने में बिस्तर का रोग कोई और लगाता है बनेगी बात तो बता देंगे तुमको मन अभी से क्यों शोर मचाता है सुस्त तबीयत बहुत ढीला काम करती है जाने क्यों मेरा बदन फिर जोर लगाता है कौन है यहां पर कलम का दीवाना ये तो...

ये इश्क़ भी बड़ा अजीब है

The Sunset View Point in Sirauna

ये इश्क़ भी बड़ा अजीब है जो दिल से दूर है उसके करीब है वो मेरे सामने अमीरी का शौक दिखाते हैं मगर मेरी शख़्सियत तो बड़ी ज़हीन है पा भी लेंगे उसे ऐसा तो भरोसा है खुद पर बाकी  तो देखो सबका अपना नसीब है वो आते हैं तो हम नज़रों को बिछा लेते हैं वो उनकी नज़ाकत और ये हमारी तहज़ीब है वो पलकों को...

जेएनयू का जहरीला जातिवाद: ब्राह्मणों और सवर्णों का अपमान

JNU

आज का भारत जहाँ विश्व को रास्ता दिखा रहा है और नए - नए कीर्तिमान गढ़ रहा है, वहीँ देश में विद्रोही ताकतों को ये रास नहीं आ रहा है। आये दिन नए विवादों से देश की अखंडता को चुनौती दी जाती है। कभी हिजाब के मुद्दे पर देश के संविधान को चुनौती दी जाती है। कभी तालिबानी गला...

किराया

hand of man on fence with nature

हम लड़खड़ाते ज़मीर को सहारा देते हैं अपने सड़े हुए जिस्म को साया देते हैं रूह तो फिर भी पाक साफ रहती है शरीर को नकली सांस और हवा देते हैं सामान कुछ रहा था मेरा उनके पास पर वो अश्कों की किश्तों का बकाया देते हैं खामोशी का भी अपना सुरूर होता है और वो लोग फिर भी शोर को बढ़ावा देते हैं उन्होंने तो रब...

विनम्रता

Politeness

“विनम्रता कभी दुर्बलता नही हो सकती बल्कि वह तो व्यक्ति की सरलता का परिचायक है”। ब्रजेश जी की टिपण्णी: परंतु आज के दौर में विनम्रता कमजोरी का पर्याय बनकर रह गया हैं। विनम्र व्यक्ति को कोई भी धमका जाता हैं। उतर: विनम्रता भी उनके साथ दिखानी चाहिए जो इसके योग्य हों। जो व्यक्ति विनम्रता की भाषा नहीं समझता उसको दण्ड की भाषा में...

मुकम्मल भी हुआ तो क्या हुआ

Broken Heart

मुकम्मल भी हुआ तो क्या हुआ ये इश्क़ है अपनी नादानी कहां छोड़ता है कभी तो खयालों को बसाता है और कभी सारे सपनो को तोड़ता है पन्ने पलटने में देर नहीं लगती और हवाओं का रूख भी मोड़ता है अकेले बैठे ये सोचता हूं दिन भर कि क्यों ये दिल मुझे हर रोज टटोलता है खामोश तो मेरी जुबान रहती है अंदर तो दिल का जलवा बोलता...

गाँव: जहाँ जीवन सिर्फ बसता ही नहीं खिलखिलाता भी है

Village Life

मेरी उम्र अमूमन 5 साल तो बढ़ ही गयी होगी क्योंकि छठ पूजा के अवसर पर गाँव के प्राकृतिक एवं प्रदुषणमुक्त वातावरण में लगभग 7 दिनों तक निवास करने का मौका मिला .... प्रातः काल नींद खुलती थी चिड़ियों के मधुर चहचाहट से ....सुबह में सैर के लिए कछुआ नदी के किनारे सिरौना से हरनरैना गाँव तक टहलते चला...

मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां

Ficus tree

मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां कहाँ पर आसमान और ज़मीन होते हैं फुर्सत नहीं है ज़िन्दगी में, लेकिन झमेला है वक़्त के तेवर भी बड़े महीन होते हैं सूखा और बदरंग तो नहीं है खैर खुशफहमी के मंज़र भी रंगीन होते हैं आसान मत समझना ज़िन्दगी के फलसफे को इसके इरादे भी बड़े संगीन होते हैं कोई वजह ज़रूर है कि रब इम्तिहान ले रहा...

मुझे सब कुछ पुराना याद है

Bullock cart

अपनी यादों का क्या करें साहब मुझे सब कुछ पुराना याद है दीवारों से उड़ती हुई धूल भी देखी ज़मीन से उखड़ते हुए मकान भी देखे यूं हालातों से बेखबर हो जाना याद है कभी एक आवाज़ पर इकट्ठा हो गए तो कहीं एक दूसरे के बदन तोड़ दिए कुछ इस तरह का याराना याद है कच्ची पगडंडियों पर जब बैलगाड़ी थी दो वक्त की रोटी मिले यही...