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खुल रहे है दस्तावेज तो चिढ रहे हो
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सरकार आपके खोए हुए या चोरी हुए मोबाइल फोन को ट्रैक...
एसo पीo सागर जी द्वारा लिखा गया रत्नेश्वरी शर्मा जी के...
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ये सांस का मुकद्दर भी कहां तक रहेगा
ये सांस का मुकद्दर भी कहां तक रहेगा वहीं, जहां धड़कनों का सैलाब बहेगा उनको कहां किस बात की कमी होगी यारों घरों में जब उनके सोना हीरा सजेगा मैं चाहता हूं वो कि वो तेज तर्रार रहें ढीले-ढालों का का तो जनाज़ा उठेगा साजिशें कई की खुद को बचाने की लापरवाही से कौन कब तक बचेगा रोज झूठ के सहारे खड़े होते हो कल तुम्हारे साथ को...
जिंदगी पेचीदा है, शहर बज़्म से सजा है
जिंदगी पेचीदा है, शहर बज़्म से सजा है मेरे रुआब में कोई गर्द सा सटा है गैर जरूरी शिकवे यहां पुरजोर हैं और तल्खियों का अलग मसला है तरकश में तीर बड़े कम हो चलें हैं हमलों का फिर भी ये क्या सिलसिला है शरीर को सताकर कारागार में हो पर रूह को झिंझोड़ने की सज़ा क्या है ईमान ए दिल का ख़ामियाजा उठाया सच की सोहबत का...
दिलों में इरादों की मशाल लेकर चलता हूं
कभी अपनी धुन में कभी बेपरवाह रहता हूं मैं परिंदों सा उड़ने का हौसला रखता हूं मुझे यकीन है कि कई लोग बड़े परेशान हैं मैं बस अपने रास्तों को तैयार करता हूं कौन क्या कहता है इसके कोई मायने नहीं साथ कौन देगा इसकी परवाह करता हूं ज़मीन पर सूखे तिनके घास से बिखर गए मैं उनकी बागबानी भी बड़े करीने से करता हूं जिंदगी में...
दिलासा क्या दूँ दिल को
दिलासा क्या दूँ दिल को, ये भटक रहा है किसी और की सरपरस्ती में उछल रहा है जानता हूँ मैं ये कि गलत राह पर हूँ फिर भी राह से दिल भटक रहा है औज़ार कुछ नहीं बस उसकी आँखें है और सीना मेरा दर्द से छलक रहा है ज़ोर आज़माइश बहुत की है मैंने मगर ये सफर बड़ा कम्बख्त रहा है एक निगाह भर...
शरीर थक गया, वहम का आगोश है
शरीर थक गया, वहम का आगोश है और लोग कहते हैं जिंदगी में जोश है चीख कर दुनिया ने मेरा दर्द देखा और अपने अभी तक खामोश है जो कहते थे हम तेरा साथ देंगे वो तो एहसान फरामोश है फूलों ने बगीचे से दगा किया तो बाग़बां का इसमें क्या दोष है कौन रहता है यहाँ पर ईमान से सब जगह आजकल लूट खसोट है पैरवीं करने का...
धड़कने बयां करती है ज़िन्दगी की किश्तें
धड़कने बयां करती है ज़िन्दगी की किश्तें सांसों का गुच्छा अब टूट रहा है आगजनी होती है सोच में सभी के गुस्सा अब बेधड़क फूट रहा है जो लम्बी दीवारों के महलों में थे उनका गुरूर भी टूट रहा है किए होंगे कारनामे तभी नाम आया लगता है रुआब भी अब छूट रहा है शोर के बाजार में मौन जैसे मर गया और आवाज़ का दुकानदार...
खुल रहे है दस्तावेज तो चिढ रहे हो
सांप से ही दोस्ती पाली थी हमने चांवल की बोरी में धंसकर मरोगे जिरह क्या करना जब सुनवाई नहीं है बेकार में क्यों किसकी दलीले सुनोगे वक़्त होते हुए सम्भले नहीं बाद में अपना माथा रगडोगे अर्जियां बहुत है लगाने को यारों हलफनामे में मगर गैरहाज़िर रहोगे तुम्हे तो मुस्कुराने से परहेज़ है दूसरों की ख़ुशी कैसे समझोगे अदालतों से ख़ारिज है मुकदमा तुम्हारा ताज़िन्दगी अब तुम गुनहगार रहोगे बेतरतीब सा...
रोज़ देखता हूँ आसपास तो
रोज़ देखता हूँ आसपास तो सवालों से भरे चेहरे परेशां करते हैं वही बेचैनी, वही नाकामयाबी और वही फितूर इतने सारे जज़्बात भी हैरान करते हैं चलते हुए एक मिटटी का ढेला मिला तो सरपट से उठा लिया कुछ सोचा नहीं और नदी के किनारे बैठ गया आँखों के आगे अंधेरों के सागर हैं न कम न ज़्यादा सभी बराबर हैं बस चंद लम्हों के लिए गालों पर...
आख़िर
मैं क्यों इस क़दर प्यार करूं मैं क्यों इस क़दर तुझपे मरूं देना तुझे अगर गम ही है तो, मैं क्यों इस क़दर तेरा इंतज़ार करूं सदियाँ बीत गयी है तेरी पुकार सुने तेरी आने की कोई भी आहट नही है अश्रु नयन मे भर आए मेरे मैं क्यों तुझसे वफादार रहूँ तेरा मेरा साथ ये ज़माने ने भी देखा है मेरे हाथो मे तेरी प्यार की...
समर्थ व्यक्ति
समर्थ व्यक्ति वो नहीं जिसके पास अपार धन और वैभव है बल्कि समर्थ वो है जो आलोचना को स्वीकार करने का माद्दा रखता हो और वंचित लोगों की आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिलाता हो