कुछ अधपकी उम्मीदों को हथेली में रखकर
आया है इस गली में कोई इतने दिनों के बाद
संजोया हुआ ख्वाब आता है नींदो के घर में
ठंडी हवाएं पलकों से टकराकर नींद को जगाए
इसी आँख मिचोली में कोई ख़्वाब सच हुआ है इतने दिनों के बाद
ये पन्ने खाली नहीं फिर भी अनसुने है
मगर इनका भी कोई दोष नहीं इसमें कि
कोई गम के खतों में दर्द लाया है इतने दिनों के बाद
बारिश तो हुई पर फिर भी रेगिस्तान बना रहा
जब धूल गिरी तो कुछ जर्रे चमक रहे थे
उन्ही जर्रो में बूंदो के मोती मिले है इतने दिनों के बाद
मेरी चुप्पी मेरी बातों की पनाहगार है
इसे यूँ ही बेकार न समझ बैठना
अल्फाज़ो से गीत मिलते है इतने दिनों के बाद
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