आज का भारत जहाँ विश्व को रास्ता दिखा रहा है और नए – नए कीर्तिमान गढ़ रहा है, वहीँ देश में विद्रोही ताकतों को ये रास नहीं आ रहा है। आये दिन नए विवादों से देश की अखंडता को चुनौती दी जाती है। कभी हिजाब के मुद्दे पर देश के संविधान को चुनौती दी जाती है। कभी तालिबानी गला काट हिंसा पर राजस्थान में कन्हैया और उत्तर प्रदेश में उमेश कोल्हे की हत्या कर दी जाती है। कभी अपनी सनक और मानसिक विकार के चलते देश में श्रद्धा, अंकिता, और अंकिता सरीखी लड़कियां को मार दिया जाता है।
पता नहीं इस देश को उकसाने का काम क्यों किया जा रहा है। ताज़ा उदाहरण है जेएनयू का जो देश का तथाकथित सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है कि जेएनयू विवादों के घेरे में है …. इस से पहले साल 2016 और 2019 में यहाँ भारत विरोधी नारे लग चुके हैं। हमें तो समझ नहीं आता यहाँ के विद्यार्थी पढ़ने आते हैं या देश को तोड़ने वाली मानसिकता को विकसित करने के लिए नए नए हथकंडे अपनाते हैं। ताज़ा मामला अभी कुछ दिन पहले का ही नवंबर 2022 के अंतिम दिनों में यहाँ दीवारों पर ब्राह्मण भारत छोड़ो के नारे लिख दिए। उसके साथ ही साथ बनिया समुदाय के लिए भी बहुत ही गलत और निंदनीय भाषा का प्रयोग किया गया। हैरानी की बात ये है की अभी तक जेएनयू का प्रशासन इस देश विरोधी हरकत पर मौन है। हालाँकि ये जगजाहिर है कि ये काम वामपंथी विचारधारा से प्रेरित स्टूडेंट यूनियन का है, जो देश को टुकड़े – टुकड़े करने का अपना घटिया मंसूबा अपने दिल में पाले हुए हैं …. इन मक्कारों की मंडली को ये नहीं पता कि जब इनका जन्म भी नहीं हुआ था तबसे भारत की आत्मा में एकरूपता और अखंडता है। हाँ समय – समय पर हमें बांटने की कोशिश की गयी मगर देश का अधिकांश वर्ग सदा से ही देश की एकता को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध है। हमें तो इन लोगों के दोगलेपन पर हंसी आती है। कभी तो ये लोग जाति व्यवस्था का विरोध करते हैं और अब खुद ही देश के सवर्ण वर्ग के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक नारे लिख रहे हैं।
ये लोग कैंसर से भी ज़्यादा खतरनाक हैं। वैसे इन लोगों को हमें कुछ साबित करने की आवश्यकता नहीं है। इसका असली मकसद हिन्दुओं में जो एकता अभी जग रही है उसको तोडना है। जो हिन्दू अब न तो दलित, न ब्राह्मण, न ठाकुर, न बनिया और न कोई और जाति के चक्कर में पड़ रहा और केवल हिन्दू और भारतीयता को अपनी पहचान बताता है, वो ही इनके देशद्रोही इरादों को मिटटी में मिला रहा है। वैसे मैं नहीं चाहता था कि एक व्यक्ति विशेष या किसी जाति विशेष का का बखान करूँ। पर जब ये लोग ब्राह्मणो के लिए ये कहते हैं कि ब्राह्मणो का देश की स्वतंत्रता में कोई योगदान नहीं है तो मुझे इनकीअज्ञानता पर बड़ा तरस आता है। ये भूल गए राम प्रसाद बिस्मिल सरीखे आज़ादी के नायक भी ब्राह्मण समाज के थे। कौन भूल सकता है चंद्रशेखर आज़ाद, मंगल पांडेय, विनायक दामोदर सावरकर, शिवराम राजगुरु, गोपाल कृष्णा गोखले, बाल गंगाधर तिलक, चाणक्य और भी नाम है जिनकी गिनती ख़त्म ही नहीं होगी।
ये लोग हमें बताएँगे, इन लोगों को पहले अपना इतिहास देखना चाहिए फिर देश के सवर्ण वर्ग पर सवाल उठाने चाहिए। अब समय आ गया इन लोगों को करारा जवाब देना का और इनका जवाब भारतवासियों की एकता से ही दिया जाएगा।