मुझे नहीं तो मेरे एहसास को तवज्जो दे
तुझे देखा है मैंने रोज़ खवाबों में
तुझे देख गली से जब मुड़ना हुआ
कीचड़ सन गया था मेरी जुराबों में
हैरान होकर जब तुझे निहारता हूं
सोचता हूं काँटों को ओट है गुलाबों में
सवाल तो जाने कितने अरसे से पूछते हैं
पर तस्सली नहीं मिलती जवाबों में
अँधेरा हर जगह पसरा हुआ है आजकल
और चींटी भर रौशनी भी नहीं आफ़ताबों में
चाँद सिरे से थोड़ी चांदनी बिखेरता है
मगर बत्तियां बुझ चुकी है चरागों में
जीने की जुस्तजू दर्द से होकर गुज़रती है
सांसों का क़र्ज़ बोया है ज़िन्दगी के बाग़ों में
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