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कुछ कच्चा पक्का लगता है

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कुछ कच्चा पक्का लगता है
कुछ कच्चा पक्का लगता है

प्यार की हद नहीं है, तुम इतना समझ लो
कि मैंने दिल से किया और तुम्हारा कुछ कच्चा पक्का लगता है

अपनी तो कहानी भी अब मैच्योर हो गई है
तुम्हारा फसाना कुछ आधा पका सा लगता है

अब बात करने का ये मुनासिब समय नहीं
मेरे अलावा हर झूठा तुम्हे सच्चा सा लगता है

दिमाग बेगैरत सी जमीन को तलाशता है
और तुम्हारा दायरा अब सिमटा सा लगता है

खामोशी अब आवाज़ से ज्यादा बोलती है
क्योंकि मेरा हर लफ्ज़ अब अनसुना सा लगता है

कौन कहेगा मेरी बात जब सब मुंह मोड़ गए
अपना तो हर दर्द अब अनकहा सा लगता है

पीछे छोड़ आया सारे खुशफहम समा को
कौन ऐसे वक्त में भरा भरा सा लगता है

कितनी कलियों ने अपना भंवरा बनाने की कोशिश की
पर तुम्हारे साथ के तजुर्बे से दिल डरा डरा सा लगता है

प्यार की हद नहीं है, तुम इतना समझ लो
कि मैंने दिल से किया और तुम्हारा कुछ कच्चा पक्का लगता है

डर मौत के होने से नही, तेरे खोने से लगता है
दर्द चोट से नही, तेरे ना होने से लगता है

जो मेरा है वो बस मेरा है इस बात का गुरूर है मुझे
उसके अलावा तो ये सारा संसार झूठा सा लगता है

वो करता रहता है बस मेरा इंतज़ार इसलिए
अपने आपको खुशनशीब समझता हूं

वरना तो आजकल कोई किसी का हाल तक पूछ लें
ये मुझे फ़र्ज़ी सा लगता है

लालच, मतलबीपन, घमंड बहुत है इस दुनिया मे
बस एक तू ही तो है मेरा जो मुझे सच्चा सा लगता है