यह बात पूर्णतः सत्य है कि वास्तविक भारत गाँव में बसता है। मगर जिस तरह से हमने गाँव की हालत देखी है यहाँ की परिस्थिति में स्वतंत्रता के बाद कोई ज़्यादा परिवर्तन नहीं आया। अभी भी बहुत से क्षेत्रों में काफी काम बाकी है मसलन शिक्षा का क्षेत्र, चिकित्सा सुविधा, रोज़गार की स्थाई व्यवस्था और भी बहुत कुछ..
बिहार के चम्पारण जिले का एक छोटा सा गाँव है सिरौना। इस गाँव का अपना एक स्वर्णिम इतिहास है। 24 अप्रैल 1917 को कस्तुरबा गाँधी और सिरौना गाँव की चुल्हिया के संवाद पर कस्तुरबा बुनियादी विद्यालय की स्थापना 13 नवंबर 1917 को सर्व प्रथम बडहरवा लखनसेन गाँव में की गयी थी जिसका ताना बाना 24 अप्रैल 1917 को सिरौना गाँव मे ही बुना गया था। वर्तमान में सिरौना गाँव मे इंटर स्तरीय उच्च विद्यालय हैं। इस विद्यालय में पढ़ने सिरौना गाँव के साथ साथ हरनैरेना, कोहबरवा, बटौवा, मसंहा, हरनाथपुर, कठमलिया आदि गांवों के बच्चे आते हैं। हम सभी ग्रामवासी सरकार से अनुरोध करते है कि कस्तूरबा गाँधी विश्वविद्यालय सिरौना गाँव मे खुले… इसके लिये हम सभी ग्रामीण मिलके जमीन की उपलब्धता करायेंगे। चूँकि कस्तूरबा गाँधी चम्पारण में सबसे पहले सिरौना गाँव मे ही आयी थी तो उनके यादों को संजोने का इससे बेहतर कोई विकल्प भी नही हो सकता।
भारत की आत्मा गाँव मे बस्ती है..सिरौना गाँव मे विश्वविद्यालय खुलने से गाँव से सटे हुए सुदूर इलाके के बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए शहर जाने को विवश नही होंगे। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा का स्तर बढ़ेगा। विश्वविद्यालय खुलने से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का अवसर बढ़ेगा।
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