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खामियाज़ा

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खामियाज़ा
खामियाज़ा

देखूं जरा कहाँ इंसा का बसेरा है
रोज कोई आवाज होती है कहीं पर

कुछ गज़ब का किस्सा उबल रहा है मन में
कि होश फाख्ता हो जाए ये सुनकर
मिले जब वो हमें गर्द की गली पर

शख़िसयत उनकी कुछ गर्म मिजाजी हो गई
जब उन पर कोई लतीफ़े उड़ेलता है
वो गुस्से का गुबार निकालते है हंसी पर

वक्त से हो चली थी कुछ बेरुखी हरकतें
कि दर्द का काफ़िला मेरी ख़्वाबगाह में आया
वो रहता है मेरी पलकों की नमी पर

आगजनी हो चुकी है सब तरफ दिलों में
कि राहतो का इंसान से कोई वास्ता नहीं
वो कब्र में है या मुर्दो की जमीं पर

कुछ सख्त हिदायतें थी दुनियादारी की
मगर फक्कड़ मन को कहाँ ये रास आया
अब कर्ज है ग़मो का मेरी ज़िन्दगी पर

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