हम लड़खड़ाते ज़मीर को सहारा देते हैं
अपने सड़े हुए जिस्म को साया देते हैं
रूह तो फिर भी पाक साफ रहती है
शरीर को नकली सांस और हवा देते हैं
सामान कुछ रहा था मेरा उनके पास
पर वो अश्कों की किश्तों का बकाया देते हैं
खामोशी का भी अपना सुरूर होता है
और वो लोग फिर भी शोर को बढ़ावा देते हैं
उन्होंने तो रब को कोसा और पत्थर बता दिया
फिर भी खुदगर्जी का वहां चढ़ावा देते हैं
खुश कौन रहता है आजकल यारों
हम तो चेहरे को दर्द छुपाने का किराया देते हैं