कोई शिकन भी माथे पर ठहरती नहीं
कभी तो कोई दाग दामन पर रहा होगा
चाँद तो सड़क पर गर्ममिज़ाजी देखता है
पर ठन्डे फर्श पर चांदनी का निशां रहा होगा
बदहवास सा घूमे दिल कि परेशां हो जाये
ठिकाने की खोज में कितना जूता घिसा होगा
अभी तो बदनसीब परिंदे को पिंजरा भा गया
कभी तो उसकी मुट्ठी में आसमाँ रहा होगा
बड़ी ज़द्दोज़हद से एक मुकाम तक पहुंच पाया
यहाँ तक पहुँचने में कितना दर्द सहा होगा
जो चला गया शायद वो मुक्कदर में नहीं था
तेरे लिए भी कोई दुनिया में बना होगा
मिटटी के ज़र्रे मेरे माथे की शान बढ़ाते हैं
ज़रूर सरहद पर सरफरोशों का काफिला सजा होगा