मैंने तो सिर्फ तुझे जीने की हिदायतें दी थी
मेरा डांटना तेरे लिए कोई ज़हर नहीं है
मिट्टी की सौंधी खुशबू पसंद है तो क्या करें
ये मेरा गांव है तेरा कोई शहर नहीं है
कितना भी समझा लो ढाक के तीन पात रहेंगे
मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं है
अपने खाने को तो कुत्ता भी जुगाड कर लेता है
और यहां हमसफर को मेरी रत्ती भर फिकर नहीं है
दूसरों ने गाली दी तो मैंने उनको चुप कराया
तेरे पास तो बोलने की भी अकल नहीं है
तू शोशेबाजी में अपना पूरा समय खराब करेगा
फिर ऐसी जिंदगी की तो कोई बसर नहीं है
मेरी कुटिया में नमक पानी और सिर्फ रोटी मिलेगी
ये मेरी झोपडी है तेरे बाप का घर नहीं है
भगवान भी तेरी हरकतों पर हंसता होगा रोज
तुझे अपने जिंदगी के लक्ष्य की कोई खबर नहीं है
रहना लापरवाह ऐसे ही, बाद में फिर पछतावा होगा
अभी भी संभल जा, ये खेलने की उमर नहीं है
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