वक्त तू मुझे कहता है चलने को
और खुद है कि रोज़ दौड़ लगाता है
अभी पड़े हैं हम घर के किसी कोने में
बिस्तर का रोग कोई और लगाता है
बनेगी बात तो बता देंगे तुमको
मन अभी से क्यों शोर मचाता है
सुस्त तबीयत बहुत ढीला काम करती है
जाने क्यों मेरा बदन फिर जोर लगाता है
कौन है यहां पर कलम का दीवाना
ये तो बाजारों का मोल बताता है
बहती हुई धारें नदी का हिस्सा था
बीता हुआ वक्त और दौर बताता है
बेघर हुआ है हर कोई अपने आशियां से
अब सड़क को हर शख्स अपनी ठौर बनाता है