“विनम्रता कभी दुर्बलता नही हो सकती बल्कि वह तो व्यक्ति की सरलता का परिचायक है”।
ब्रजेश जी की टिपण्णी:
परंतु आज के दौर में विनम्रता कमजोरी का पर्याय बनकर रह गया हैं। विनम्र व्यक्ति को कोई भी धमका जाता हैं।
उतर:
विनम्रता भी उनके साथ दिखानी चाहिए जो इसके योग्य हों। जो व्यक्ति विनम्रता की भाषा नहीं समझता उसको दण्ड की भाषा में जवाब देना चाहिए।
पहले भी कहा गया है कि अहिंसा परम धर्म है, मगर जब बात आती है धर्म की रक्षा करने की तो उसके लिए की गई हिंसा श्रेष्ठ है।
दया, करुणा और विनम्रता मानवों के लिए है राक्षसों के लिए नहीं। गीता का अनुसरण कीजिए, जहां सत्य और धर्म की रक्षा हेतु अपनों पर भी बाण चलाना पड़ता है। लोग कहते हैं कि क्रोध नहीं करना चाहिए, सही बात है.. मगर जब किसी के साथ अन्याय हो, जब कोई अत्याचार कर रहा हो, जब कोई लगातार पाप को बढ़ावा दे रहा हो, तब उस समय उस व्यक्ति का अपने अंदर के क्रोध से उसका प्रतिकार करो। आपका ख़ून खौलना चाहिए जब कहीं गलत हो किसी के साथ।
विनम्रता तभी तक अच्छी है जब तक वह सुयोग्य व्यक्ति के साथ की जाए, जो व्यक्ति इसके योग्य नहीं उसको डंडे की भाषा से समझाना पड़ता है। लोगों को गलतफहमी है कि ये देश गांधी की वजह से आज़ाद हुआ क्योंकि उन्होंने सिर्फ एकतरफा अहिंसा को बढ़ावा दिया, जिससे देश दुर्बलता की ओर जा रहा था। वो तो भगत, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद , बिस्मिल, लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोस और भी ना जाने कितने असंख्य स्वतंत्रता सेनानी वीर क्रांतिकारियों के अंदर का गुस्सा और लावा था जिसने ब्रिटिश शासन जड़ें हिला दी।
व्यक्ति की प्रतिक्रिया, समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है। इसलिए हर प्रतिक्रिया का सही समय, स्थान और परिस्थिति में सही से उपयोग किया जाए तो वो कहीं से गलत नहीं होती।