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संस्कृति से अलगाव की विकृत मानसिकता ही मानवीय संवेदनाओ के पतन का प्रमुख कारण है

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संस्कृति से अलगाव

तेजी से वैश्वीकरण और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की विशेषता वाले युग में, वैदिक सनातन धर्म, इसके अनुष्ठानों और भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत के प्रति बढ़ती अलगाव और उपेक्षा को देखना निराशाजनक है। इस ब्लॉग का उद्देश्य उस विकृत मानसिकता पर प्रकाश डालना है जो इस अलगाव को बढ़ावा देती है और इसका मानवीय संवेदनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे समग्र रूप से समाज का पतन होता है।

वैदिक सनातन धर्म का महत्व और उसके अनुष्ठान:
वैदिक सनातन धर्म, जिसे अक्सर हिंदू धर्म कहा जाता है, केवल एक धर्म नहीं है; इसमें आध्यात्मिकता, नैतिकता और नैतिक मूल्यों में गहराई से निहित जीवन जीने की विस्तृत शैली है। यह अस्तित्व की प्रकृति, मानवीय उद्देश्य और सभी प्राणियों के अंतर्संबंध में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इस प्राचीन परंपरा से जुड़े अनुष्ठान आध्यात्मिक विकास, आत्म-प्राप्ति और परमात्मा के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

अलगाव की विकृत मानसिकता:
दुर्भाग्य से, आधुनिक समय में एक विकृत मानसिकता उभर कर सामने आई है जो व्यक्तियों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से दूर करना चाहती है। यह मानसिकता अक्सर गलत धारणाओं, गलत व्याख्याओं या यहां तक कि वैदिक सनातन धर्म और उसके अनुष्ठानों के भीतर निहित गहरी जड़ों वाले ज्ञान और प्रतीकवाद की समझ की कमी से उत्पन्न होती है। इस अलगाव के परिणामों और मानवीय संवेदनाओं पर इसके प्रभाव को पहचानना महत्वपूर्ण है।

पहचान की हानि और जड़हीनता:
जब व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत से खुद को अलग कर लेते हैं, तो वे अपनी जड़ों से संपर्क खो देते हैं, जो व्यक्तिगत पहचान की नींव के रूप में काम करती हैं। यह अलगाव जड़हीनता और अस्तित्वगत शून्यता की भावना पैदा कर सकता है, स्वयं के धर्म, संस्कृति और विरासत के प्रति उदासीनता तथा हीन भावना उत्पन्न होने लगती है और दिशा की कमी हो सकती है।

नैतिक मूल्यों का ह्रास:
वैदिक सनातन धर्म करुणा, सम्मान, सत्य निष्ठा और प्रकृति के साथ सद्भाव जैसे नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है। इन मूल्यों की उपेक्षा से सामाजिक नैतिकता में गिरावट आ सकती है, जिससे स्वार्थ, भौतिकवाद और नैतिक पतन बढ़ सकता है।

आध्यात्मिकता और आंतरिक कल्याण की उपेक्षा:
वैदिक सनातन धर्म के अनुष्ठान और आध्यात्मिकता, आंतरिक शांति और कल्याण को विकसित करने के लिए रचे गए हैं। जब व्यक्ति इन प्रथाओं से खुद को दूर कर लेते हैं, तो वे अक्सर अपने आध्यात्मिक आयामों के पोषण के महत्व को नजरअंदाज कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जीवन पर एक उथला और भौतिकवादी दृष्टिकोण बन जाता है।

सांस्कृतिक विरासत का क्षरण:
वैदिक सनातन धर्म की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में कला, संगीत, नृत्य, साहित्य और दर्शन शामिल हैं। इस विरासत की उपेक्षा करके, एक समाज अपनी विशिष्ट पहचान, साथ ही पीढ़ियों से चले आ रहे विविध दृष्टिकोण और ज्ञान को खोने का जोखिम उठाता है। यह क्षरण समाज के ताने-बाने को कमजोर करता है और सुंदरता और विविधता की सराहना को रोकता है।

संवाद और संपर्क को पुनर्जीवित करना:
इस विकृत मानसिकता के दुष्परिणामों को दूर करने के लिए वैदिक सनातन धर्म और उसके रीति-रिवाजों से पुनः संबंध स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। इस प्रक्रिया में शामिल हैं:

शिक्षा और जागरूकता:
शिक्षा को बढ़ावा देना और वैदिक सनातन धर्म के महत्व, दर्शन और प्रतीकवाद के बारे में जागरूकता बढ़ाना गलत धारणाओं को दूर कर सकता है और व्यक्तियों को आज की दुनिया में इसकी प्रासंगिकता को समझने में मदद कर सकता है।

संवाद और खुले विचारों को प्रोत्साहित करना:
संवाद के माहौल को बढ़ावा देना, जहां व्यक्ति संस्कृति, आध्यात्मिकता और वैदिक सनातन धर्म के बारे में रचनात्मक बातचीत में संलग्न हो सकते हैं, अंतराल को पाट सकते हैं और आपसी समझ का निर्माण कर सकते हैं।

सांस्कृतिक विविधता को अपनाना:
वैदिक सनातन धर्म के भीतर विविधता को पहचानने और मनाने से विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के संरक्षण, समावेशिता और एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है।

आधुनिक जीवन में बुद्धि को एकीकृत करना:
वैदिक सनातन धर्म की शिक्षाओं को आधुनिक संदर्भ में अपनाने से व्यक्ति इसके शाश्वत ज्ञान को अपने दैनिक जीवन में शामिल कर सकते हैं, जिससे उनका पोषण हो सके।

इसके साथ ही हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं की वैदिक सनातन धर्म प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को अपनाने के साथ साथ हमें व्यर्थ के कर्मकांडों, अन्धविश्वास और हिन्दू धर्म के नाम पर पाखंड करने की प्रवृति को समाप्त करने के लिए भी कदम उठाने होंगे। इसका सबसे अच्छा उपाय है कि हम अपने महान ग्रंथों, पुराणों, वेदों, उपनिषदों को जन जन तक पहुचाये और वास्तव में हिन्दू धर्म और उसकी मान्यताएं क्या हैं उनसे अपनी आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराएं।

वैदिक सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए बहुत से प्रोपेगंडा चलाये जा रहे हैं जहाँ आजकल के कुछ सस्ते और नीच मानसिकता वाले साहित्यकार, फिल्म निर्माता हमारे धर्म का मज़ाक बनाकर हम पर कुठाराघात करते हैं। ऐसे कुकृत्यों का हमें ज़ोरदार विरोध करना चाहिए। अभी का ताज़ा उदाहरण है कुछ नीच, घटिया और अहंकारी लेखक और फिल्मकार जिन्होंने आदिपुरुष जैसी घटिया, दोयम और हिन्दू विरोधी फिल्म बनाकर अपनी ही संस्कृति का उपहास किया है। ये लोग हैं, जैसे कि वो मनोज मुन्तशिर और ओम राउत जो हिन्दू के वेश में सबसे बड़े विधर्मी हैं और इनको अगर आज कालनेमि कहा जाए तो बहुत सही रहेगा।

हालाँकि हम इस फिल्म और उसके पीछे इन घटिया लोगों की मंशा क्या थी उस पर भी बात करेंगे अगले ब्लॉग में, मगर तब तक के लिए बस इतना ही कहना चाहूंगा कि सनातन धर्म की अलख जगाकर रखना है ताकि विधर्मी और शत्रु हमारे विद्रोह की अग्नि में भस्म हो जाए और फिर से संस्कृति के दोहन का दुस्साहस न करे।