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शशिकिरण आई आकाश में

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शशिकरण

भोर ढल गयी, आई संध्या
धीर-धीरे घनी हुई है रतिया
चमके अम्बर में अगणित तारे
सौम्य, चंचल और हैं उजियारे
बिजली दमके उत्तम प्रकाश में
शशिकिरण आई आकाश में

तरु देते हैं पवन सुहानी
मेघ बरसते अमृत – पानी
अलबेली है चारों दिशाएं
मन में जागे नवीन आशाएं
शीतलता को रखकर पास में
शशिकिरण आई आकाश में

रिमझिम बूँदें वसुधा पर आई
गूंजी खुशियों की शहनाई
खिला वसुधा का सौंदर्य
घुला उसमे प्रेम माधुर्य
झूमे तरेंगे अपनी तलाश में
शशिकिरण आई आकाश में

अमावस के बाद आई है पूनम
बदला है जीवन का मौसम
महक रहे सुगन्धित चन्दन
समय कर रहा है अभिनन्दन
खोया तिमिर अपने निवास में
शशिकिरण आई आकाश में

दीप्त दिशा में है उजियारा
चंचल मन भी उस से हारा
ज्वलित है नगरी देखो गगन की
मस्त चाल है अब तो पवन की
मौसम निर्मित है शीत श्वास में
शशिकिरण आई आकाश में

चहुँ और चमकते तारे
उसका सौंदर्य और निखारे
रूप है जैसे सबसे अनोखा
मानो हो सोने का झरोखा
तत्पर है वो ग्रीष्म – विनाश में
शशिकिरण आई आकाश में

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