मोतिहारी जिले का एक मनोरम गाँव “सिरौना” जिसका अपना एक इतिहास है। कभी इतिहास के पन्नों को खंगालेंगे तो इस गाँव का दर्शन आपको स्वतंत्रता के आंदोलन की याद दिला देगा। नील की खेती और उस से जुड़े वाकये आप सुनेंगे तो आपको बड़ी हैरानी और साथ में प्रसन्नता होगी। खैर! अब अपने गाँव की हाल में ही हुई यात्रा का आपको वृतांत सुनाने जा रहा हूँ। कंप्यूटर टीचर की परीक्षा देने हमे 18 सिंतबर को अपने घर यानि अपनी मातृभूमि सिरौना जाना था। मै अक्सर अपने शिक्षा के अनुकूल सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करता रहता हूँ। मन चाहता है कि अब जीवन में ठहराव हो..शहर में बहुत भागदौड़ कर लिया। अब गाँव में अपने समाज के, परिवार के लोगो के साथ जीवन गुजारा जाए। बचपन से लेकर अब तक जीवन के लगभग 30 बसंत पढ़ाई और रोजगार के सिलसिले में दूसरे प्रदेश में किराए के मकान में गुजार दिये।
किसी कवि ने कहा है; ‘परिंदे भी नहीं रहते पराये आशियानों में, हमने जिंदगी गुजारी है किराये के मकानों में।
इस पंक्तियां में जो दर्द है वो भला हम प्रवासियों से बेहतर कौन महसूस कर सकता है।
“दुनिया भर के महलों की कौन सोचता है, जब अपना एक मिटटी का छोटा सा घर सुकून देता है”
बाकी के बचे कुछ साल तो अपनी जन्मभूमि में अपने लोगो के बीच में गुजारूं बस यही सोच कर मै आये दिन सरकारी फॉर्म भरता रहता हूँ कि कभी तो बिहार में रहके स्थायी नौकरी करने का मौका मिलेगा। हालांकि मैने ये भी सोचा है कि 10 साल और कमा लूं ताकि बुढ़ापा में किसी पे आश्रित होना ना पड़े। फिर मैं अपने गाँव चला जाऊंगा बाकी की बची ज़िन्दगी अपने मिट्टी में गुजारने। तरक्की की कोई सीमा नहीं होती..ये मै बखूबी जानता हूँ। इंसान कितना भी कमा ले उसकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होगी। कमाई के साथ साथ आवश्यकता बढ़ती जाएगी। लेकिन इतना तो कमा लूं कि “मेरा परिवार अभी चैन से रहे और किसी के आगे हाथ फैलाने की स्थिति न पड़े”।
दरअसल कम्प्यूटर टीचर का यह परीक्षा बिहार सरकार को दोबारा आयोजित कराना पड़ा। इससे पहले फरवरी महीने में भी सरकार ने यह एग्जाम आयोजित कराई थी लेकिन पेपर लीक होने के कारण वह रद्द हो गया। अमूमन बिहार में कोई भी परीक्षा एक बार में सही ढंग से सपन्न नही होता। परीक्षा में पेपर लीक होना बिहार के लिए आम बात है। हमारे राज्य की शासन व्यवस्था सिर्फ नेताओ के सुरक्षा के लिए है..आम जनता की सुरक्षा, विद्यार्थियों की भविष्य की चिंता सरकार को नही है। जनसँख्या बढ़ती जाए, बेरोजगारी बढ़ती जाए इससे सरकार को कोई मतलब नहीं रह गया है। आये दिन ह्त्या, लूट की खबर आम हो गयी है। सरकार सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया है। लोग बाढ़ में डूब के मरे, कोरोना से मरे या भूख से मरे..ये सब जैसे हमारी नियति बन गयी है। सही समय पर परीक्षा लेकर उसका परिणाम घोषित करना ये संभव नही हो पाता लेकिन चुनाव सरकार एकदम अपने समय पर करा रही है। ताकि फिर से सत्ता हासिल हो और हम अपने हिसाब से निश्चिंत होकर 5 साल तक शासन करें।
इंद्रदेव की कृपा से इस बार हमारे यहाँ काफी बारिश हुई है। धान की फसल के लिए अत्यधिक बारिश की आवश्यकता होती है। इस कारण इस बार धान की फसल अच्छी लगी हुई है। चूंकि बारिश अब भी लगातार वैसे ही हो रही जबकि अब फसल के लिए बारिश की आवश्यकता नही है। इसीलिए किसानों को अब यह चिंता सता रही कि लगी हुई फसल अत्यधिक बारिश से बर्बाद ना हो जाये। बारिश अच्छी होने से हमारे गाँव के तरफ मछली, घोंघा, केकड़ा (जिसे शहर के लोग सी फूड के नाम से जानते है) आदि अधिक मात्रा में उपलब्ध हो गए है। बाढ़ के कारण अधिकतर हरी सब्जियां नष्ट हो गई और जिनके बची है वो काफी महंगे दामों में बेच रहे है। इस कारण अधिकतर ग्रामीण जो माँसाहारी है वो मछ्ली, घोंघा, केकड़ा आदि खाकर अपना पेट भर रहे है।
बिहार में रोजगार का संकट और गरीबी का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गाँव के बच्चे से लेकर बड़ो तक दिनभर में मछली का शिकार करते है और जो भी उन्हें हासिल होता है उसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालते है। जिन बच्चों के हाथ में किताब होनी चाहिए वो अपने हाथों में बन्शी (मछली पकड़ने का यंत्र जो एक लकड़ी, धागे और अलुमिनियम के नुकीला तार के सहारे बनाया जाता है) लिए पूरे दिन मछली का शिकार करते है, अपने और अपने परिवार की पेट की आग बुझाने के लिए। सच ही कहा गया है “भूख से बड़ा कोई पाप नही और गरीबी से बड़ा कोई अभिशाप नही”।
मेरा गाँव कछुआ नदी के किनारे बसा हुआ है..सुबह सुबह जब नदी के किनारे बैठते है या टहलते हुए हरनरैना की तरफ जाते है तो काफी सुखद अनुभूति होती है। नदियों की छल छल करती ध्वनि.. चारों ओर हरियाली.. शुद्ध हवा.. सूरज की लालिमा…चिड़ियों की चहचहाट… मन को सुकून देता है। सेना में भर्ती होने के उद्देश्य से सुबह में गाँव के अधिकतर बच्चे दौड़ लगाकर अभ्यास करते है। गाँव के ब्रहम बाबा के कृपा से हरेक साल गाँव से अधिकतर बच्चे अपने देश सेवा के लिए चयन भी होते है। बड़ो को देखकर छोटे भी अपने कर्तव्य पथ पर चल रहे है।
हमारी अपनी सरकार से यही अनुरोध है कि हमारे लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए अपने राज्य में ही रोजगार का अवसर बढ़ाये। कृषि, लघु उधोग, कुटीर उधोग का बढ़ावा दें। हम प्रवासी कहलाना पसंद नही करते। हमारे भी बहुत अरमान है कि अपने जीवन का समय माता-पिता, बीबी-बच्चे, भाई-बहन, दादा-दादी, चाचा-चाची संग मिलके समाज में गुजारे। हमारे यहां यह तक मजबूरी होती है कि किसी के घर का कोई सदस्य मर जाता है और उसके अन्त्येष्टि क्रिया के लिए अगला आदमी नौकरी रोजगार के चक्कर में घर भी नही पहुँच पाता है कि गाँव चले जायेंगे तो नौकरी छूट जाएगी और जब नौकरी चली जाएगी तो हमे भूखे मरने की नौबत आ जायेगी। मेरी सरकार से अनुरोध है कि जनसँख्या नियंत्रण कानून लाये.. बेशक कम लोग हो..लेकिन सबको रोजी रोजगार अपने प्रदेश में मिले। कोई किसी दूसरे राज्य का मोहताज ना हो।
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