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उम्मीद की लौ एक नया दीया जलाती है

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उम्मीद
उम्मीद की लौ एक नया दीया जलाती है

कभी कुछ सोंचूं तो याद बह जाती है
मेरे सिरहाने में आने से नींद कतराती है।

आँख का धुंआ राख बनकर उड़ता है
और आँसुओ की धार नजर आती है।

मालूम है कि अभी दौर मुश्किलात में है
ये भी गुजर जाएगा, ज़िन्दगी समझाती है।

बहुत मन किया कि दूर सैर पे निकल जाऊँ
लेकिन घर की दहलीज में ही अब फिजा आती है।

तू सोच कि मै तेरा मुस्तक़बिल हूँ यार
अतीत की यादें फिर क्यों तुझे सताती है।

अँधेरा तो कब से गश्त लगाए बैठा है
मगर उम्मीद की लौ एक नया दीया जलाती है।