Home साहित्य उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए

उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए

1048
0
Man
उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए

उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए
ख्वाबों में तो कितना बतियाते थे

कभी गौर नहीं किया अपने तेवरों पर
बात बात पर हम भी गरियाते थे

वो कौन सी मंजिल है जहां रुकेंगे
रोज राह की चोटों को सहलाते थे

छुपाने की जद्दोजहद बड़ी मुश्किल है यार
झूठी हंसी जब चेहरे को पहनाते थे

ना दर्द में हमदर्द रहा ना राह में हमसफर
धड़कनों को यूं ही तस्सली दिलवाते थे

शाम-ए-महफिल में अब गजलें नहीं होती
जिन्हे हम खामोशी से गुनगुनाते थे

टूटना ही था उस घरौंदे ने एक दिन
जिसको हम कच्ची ईंटो से बनवाते थे

उसके गुनाहों की दबिश भला क्यों होगी
झूठे चश्मदीदों से जब शिनाख्त करवाते थे