वक़्त अपने तेवर दिखाने से कहाँ बाज़ आता है
जब अच्छा हो तो अनजान भी साथ आता है
दर्द से इतनी यारी हो चली है यारों
कि सुकून-ऐ-दिल भी कहाँ रास आता है
कुछ पलों की दूरी है, मगर फासले बहुत हैं
दो कदम चलकर कौन पास आता है
तुम अपनी मसरूफियत में मुझे भुला बैठे
मुझे भी फुर्सत में कहाँ याद आता है
सामने हैं तो शिकायतें हज़ार रहती है
अहमियत का एहसास जाने के बाद आता है
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