ये धूप चटक होती है
यूं सर्द गरम होती है
अब शाम की फुहारों में
दिन रात जलन होती है
यूं शहर भी सूना पड़ा
ये दर्द भी दूना बढ़ा
कांटे लगे है राहों में
हर रोज़ चुभन होती है
कुछ हवा भी नाराज़ है
ये बेसुरा सा साज़ है
थोड़ी सी सांसें रह गई
अब साथ घुटन होती है
साथी ना जाने कब गया
ग़म का समंदर बह गया
एहसास सारे मर गए
बस दिल में अगन होती है
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