ये किस्से तो कुछ अपने लगते हैं
दूर बैठे जब वो हँसने लगते हैं
रात मंज़िल का इशारा मिला था
सुबह रास्ते परखने लगते हैं
बेलोस अभी तक मेरी शख्सियत रही है
अब हम भी खुशामद करने लगे हैं
बहते हैं चेहरे पर मुस्कानों के दरिया
नदियों के दायरे तो सिकुड़ने लगते हैं
झुंड मे आवाज़ दब जाती है मगर
संगीत से कदम थिरकने लगते हैं
हरी भरी क्यारियों में ज़िंदगी खुशनुमा है
जब बगीचों में फूल खिलने लगते हैं
यहाँ कोई निशान नहीं है दर्द का
आंसू भी मोतियों मे बदलने लगते हैं
मेरी आवारगी है कि रोज़ मेरा इम्तिहान लेती है
जब उसकी गलियों से हम गुज़रने लगते हैं
और सुना भाई तुझे याद है वो किस्सा
जिसे सुनकर तेरे जज़्बात भड़कने लगते हैं
मुझे गाली मिली तो मैने उसे हाथों हाथ लिया
अब इस चीज़ से भी लोग चिढ़ने लगते हैं
यूँ ही ज़िन्दगी में सुकून हो और दूसरों की परवाह हो
सच्चे फिर सारे सपने लगते हैं
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