जिंदगी पेचीदा है, शहर बज़्म से सजा है
मेरे रुआब में कोई गर्द सा सटा है
गैर जरूरी शिकवे यहां पुरजोर हैं
और तल्खियों का अलग मसला है
तरकश में तीर बड़े कम हो चलें हैं
हमलों का फिर भी ये क्या सिलसिला है
शरीर को सताकर कारागार में हो
पर रूह को झिंझोड़ने की सज़ा क्या है
ईमान ए दिल का ख़ामियाजा उठाया
सच की सोहबत का यही सिला है
इंसाफ की कितनी अर्जियां लगाई
सालों के फैसले से हुआ क्या है
कोई कहे न कहे मैं समझता हूं ये
कि दिल के अंदर का माजरा क्या है
बदहवास चांदनी अकेले हो गई आज
छिटकते सितारों की खता क्या है
बयानों के कितने ही सूरमा है यहां पर
रूह में खलिश और जुबां पर हवा है
बड़े गैर वाजिब से सवाल थे उनके
जवाब को सुनने की हिम्मत कहां है
कठिन शब्द और उनके अर्थ:
बज़्म: सभा, गोष्ठी, महफ़िल
रुआब: शक्ति, सम्मान, कोई विशेष बात से प्राप्त प्रसिद्धि
पुरजोर: भरपूर ताकत से
तल्खी: कड़वाहट
मसला: मुद्दा, सवाल , समस्या
तरकश: तीर रखने का चोंगा, तूणीर
रूह: आत्मा
ख़ामियाजा: नुक्सान
सोहबत: संगत, पास बैठना, मित्रता, दोस्ती
माजरा: घटना, वाकया, मामला
गैर वाजिब: अनुचित, अयोग्य
बदहवास: जिसका होश ठिकाने न हो, जो होश और हवास में न हो
ख़लिश: चुभन, दर्द की टीस, चिन्ता, फ़िक्र, उलझन
गर्द: राख, धूल, मिट्टी, खाक