प्रिय रत्नेश्वरी जी,
भाग्यशाली है वो लोग जो अपने गाँव में रहते है। मेरी भी इच्छा थी किन्तु अब लगता है वह इच्छा पूरी नहीं होगी। आज भी वे दिन जब याद आते है तो अचानक मन खिंचा चला जाता है। गाँवों में नाटकों का आयोजन करना, सुबह फुटबॉल का टूर्नामेंट करना, टायर गाड़ी पर सवार होकर रात-रात भर सफर कर पकड़ीदयाल की यात्रा करना या पताही फुटबॉल का मैच खेलने जाना – सारी बातें ज्यों की त्यों याद है।
हाई स्कूल के स्थापना अपने आप में एक बेमिसाल उदाहरण है गाँव के जिन लोगो ने जमीन दान कर स्कूल का निर्माण में सहयोग दिया और आज भी सहयोग दे रहे है वो धन्यवाद के पात्र हैं। इस अवसर पर स्मारिका का प्रकाशन भविस्य के लिए धरोहर सिद्ध होगा।
मुझे स्मरण नहीं है कि गाँव में कौन कौन से दिग्गज महापुरुष आये कित्नु एक अविस्मरणीय नाम जो है वह है श्री मति कस्तूरबा गाँधी का। मेरे पिताजी कहते थे कि इस गाँव में कस्तूरबा गाँधी आयी थी और कदाचित हमारे आँगन में भोजन भी ग्रहण किया था यह आपलोगो के लिए गौरव का विषय है। आज भी मै बरहरवा जाता हूँ तो श्री मति गांधी की याद आ जाती है क्योकि इसी स्थान पर उनका कैंप लगा था जहाँ से उन्होंने सिरौना की पैदल यात्रा की थी।
एसo पीo सागर
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