ये सांस का मुकद्दर भी कहां तक रहेगा
वहीं, जहां धड़कनों का सैलाब बहेगा
उनको कहां किस बात की कमी होगी यारों
घरों में जब उनके सोना हीरा सजेगा
मैं चाहता हूं वो कि वो तेज तर्रार रहें
ढीले-ढालों का का तो जनाज़ा उठेगा
साजिशें कई की खुद को बचाने की
लापरवाही से कौन कब तक बचेगा
रोज झूठ के सहारे खड़े होते हो
कल तुम्हारे साथ को भी कोई मुकरेगा
शाख से पत्तों का गिरना लाजिमी है यारों
मिट्टी से तिनकों का दामन कैसे हटेगा
बहुत किया बर्दाश्त अब हमला करेंगे
मक्कारी पर सच बहुत जोरदार वार करेगा